हाय रे लत!
आज घड़ी,घर छोड़ आया हूं,
ऐसा लग रहा,
शरीर का कोई हिस्सा छोड़ आया हूँ,
तुम पूछती हो ना,
तुम मेरे लिए क्या हो,
कुछ ऐसा ही महसूस होता है,
जब तुम नही होती,
तो क्या अब मैं तुम्हे लत कहूँ…
क्या कहूँ ?

हाय रे लत!
आज घड़ी,घर छोड़ आया हूं,
ऐसा लग रहा,
शरीर का कोई हिस्सा छोड़ आया हूँ,
तुम पूछती हो ना,
तुम मेरे लिए क्या हो,
कुछ ऐसा ही महसूस होता है,
जब तुम नही होती,
तो क्या अब मैं तुम्हे लत कहूँ…
क्या कहूँ ?
सुनो !
तुम मेरी जिंदगी में,
नमक जैसी हो,
बिन तेरे
कोई स्वाद नही
किसी व्यंजन का
सब फीका
सा लगता है,
प्यार-व्यार
मुझे सामझ नही आता
मैं बस इतना जनता हूँ,
की तुम्हारे साथ
सब स्वादिस्ट लगता है,
बिन तेरे, सब फीका..
और हा जब जब
मैं व्रत रखता हूं ,
तब तब तुम
सेंधा नमक
बन जाती हो,
तुम ही कहो
मुझे तुमसे प्यार भी है या
तुम बस मेरी
जरूरत हो, जिंदगी हो.. क्या हो तुम ?