हाय रे लत! आज घड़ी,घर छोड़ आया हूं, ऐसा लग रहा, शरीर का कोई हिस्सा छोड़ आया हूँ, तुम पूछती हो ना, तुम मेरे लिए
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शतरंज की बाज़ी…
ये किस उधेड़बुन में उलझा रही हो मुझे,कभी दो कदम आगे,तो कभी ढाई कदम पीछे,क्यो जीवन को ‘शतरंज की बाजी’बना रही हो तुम,चलो तुम जीती,मैं
जरूरी है क्या?
प्रेम करना और बोलना, जरूरी है क्या,जब लोगो ने #प्रेम को,बोलना शुरू किया, प्रेम फीका होता चला गया, वो क्या #प्रेम ,जिसे जताना पड़े,करता हूँ

मैं प्रेम में हूँ…
सिर्फ सभ्यता और व्यवस्था के बंधन के कारण तुम्हारे साथ हूँ,
ऐसा नही है….
एक अनजाना सा लगाव है..
जो तुमसे दूर जाने ही नही देता..
तुम इसे प्रेम जैसा कुछ कहना चाहो,
तो मैं तुम्हे सभ्यता के बंधनों से,
मुक्त करता हूँ..
मैं प्रेम में हूँ…

दोस्त हो तुम मेरी …
दोस्त हो तुम मेरी ,
परम्पराओ, व्यवस्थाओं और समाज ने,
तुम्हे मेरी पत्नी बना दिया….
पर सच कहूं?
पति पत्नी के रिश्तों की SOP
मुझे समझ नहीं आती…..

जरूरत हो, जिंदगी हो.. क्या हो तुम ?
सुनो !
तुम मेरी जिंदगी में,
नमक जैसी हो…..
ब्रेकअप…
बहुत प्यार करती थी, वो मुझसे, वो रोज दिन में 2-3 बार मेरे मुह लगती, महफिले जमती, मैं भी उसे मुह लगाकर, बड़ा शान बघारता,