एक पूरी ज़िंदगी मे,होते है कई अधूरे दास्ताँ,जैसे बूंद-बूंद से बनता है समंदर,जैसे राई-राई से बनता है पहाड़,वैसे ही कई अधूरी दास्तानों से मिलकर,बनती है
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एक पूरी ज़िंदगी मे,होते है कई अधूरे दास्ताँ,जैसे बूंद-बूंद से बनता है समंदर,जैसे राई-राई से बनता है पहाड़,वैसे ही कई अधूरी दास्तानों से मिलकर,बनती है