एक पूरी ज़िंदगी मे,
होते है कई अधूरे दास्ताँ,
जैसे बूंद-बूंद से बनता है समंदर,
जैसे राई-राई से बनता है पहाड़,
वैसे ही कई अधूरी दास्तानों से मिलकर,
बनती है इक पूरी ज़िंदगी,
अधूरापन पूर्णता के मार्ग पर,
एक पड़ाव मात्र है,
और पड़ाव कभी गंतव्य नही होते,
पर गंतव्य तक का सफर पड़ावों के बिना अधूरी दास्ताँ है।।
