मैं इक चलता – फिरता कारवां हूँ,
यादों का,
और कुछ भी तो नही मेरे पास,
यादों के सिवा,
हर पड़ाव से आगे निकल जाता हूँ,
हर बार खाली होते हैं मेरे हाथ,
कुछ भी तो सँजो नही पाया,
पूंजी के नाम पर,
बस यादें..
कुछ ठहाकों भरी,
कुछ आहें..
कुछ छूटी मन्ज़िले,
कुछ बिसरी राहें,
यादों का कारवां ही तो हूँ मैं..
हमेशा रहूँगा तुम्हारी यादों में,
कभी आंसू बनकर,
कभी आह बनकर,
यादों का कारवां ही तो हूँ मैं।
