आओ तुम्हे दो समानांतर रेखाओं की कहानी सुनाऊँ,
हाँ वही रेखाएं, गणित के क्लास वाली,
जो कभी नहीँ मिलती, कहीं नहीं मिलती
अर्थात अनंत पे कहीँ…
और जहाँ मिलती है, वहा दृष्टि का अंत है,
उसने भी यही कहा था, उन दोनों के बारे में,
की भूल जाओ मुझे,हम दोनों समानांतर रेखाएं है,
तुम मेरे साथ चल तो सकते हो ,
पर कही पहुँच नहीँ सकते…
पर वो ज्यामितीय में माहिर,कहाँ सुनता उसकी,
अलग अलग कोंण खींचता रहा,
कई वक्र भी खींचें,
और सारे सूत्रों को,
धता बता वो मिले, और यू मिले,
की जैसे दरिया, समंदर में जा मिलता है,
और पहचान के साथ मिठास भी खो बैठता है,
पर सूत्र तो सूत्र होता है, इतनी आसानी से कहा असिद्ध होता है,
समंदर दरिया में उतरा,कई लहरे साथ मे उछाली,
और फिर उसे गणित की याद आयी,
की समानांतर रेखाएं कहीँ नहीँ मिलती,
सिद्ध सूत्र है, तुमने ही तो कहा था..
और बस फिर क्या था, गणित की जीत हुई,
और वो दो समानांतर रेखाएं फिर कभी नहीँ मिले,
अनंत पर भी नहीँ, क्षितिज पर भी नहीँ..

Each line heart touching
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आभार राजबीर ! 💐
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