जीवन दिन प्रतिदिन सुविधा सम्पन्न हो रहा है और असंतोष बढ़ता जा रहा है,शायद पिछले हजारों सालों मे कीसी भी पीढ़ी ने इतनी सुविधायें ना
कहानी-3 “अनुपमा गाँगुली का चौथा प्यार” — “The Urban ऋषि”
https://anchor.fm/s/2065cce4/podcast/rss Summary अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार पुस्तक से शीर्षक कहानी। Transcription कहानी-3 “अनुपमा गाँगुली का चौथा प्यार” — “The Urban ऋषि”
होली की हार्दिक शुभकामनाएं…
आपके व आपके परिवार वालों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं. सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें , सानंद रहें!!
संबल..
सम्बल का मतलब तब समझ आया,जब खुद को उसकी तलब लगी थी,बड़ी मुश्किल से मिला था,पर जब मिला तो,आंखों से मोती बन टपक पड़ा,अब मैं
वेटिंग रूम / Waiting Room
बेटी के ICU में होने की तकलीफ बहुत अंदर तक थी, मैं निराश भी था। पूरा दिन हॉस्पिटल के चक्कर लगाता रहा कागजी कार्यवाही, रजिस्ट्रेशन
गलतफहमी…
कुछ करते रहने की इतनी बुरी आदत है मुझे,की कुछ भी करता रहता हूँ,कोई काम ना भी हो तो बिजी रहता हूँ,क्यो?क्योकि बिजी रहने की
विचार-1
अव्यवस्था,अनियमितता और आलस…. इनको सिर्फ आप ही दूर कर सकते हों, क्योंकि ये आप के फैलाये पाप है।
हाय रे लत!
हाय रे लत! आज घड़ी,घर छोड़ आया हूं, ऐसा लग रहा, शरीर का कोई हिस्सा छोड़ आया हूँ, तुम पूछती हो ना, तुम मेरे लिए
🪔 शुभ दीपावली 🪔
आप सभी पाठकों एवं मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए, बधाई । 🎉। इस खुशी,हर्ष, उल्लास मे एक एक बात याद रखिएगा, खुशियां बांटने से
शतरंज की बाज़ी…
ये किस उधेड़बुन में उलझा रही हो मुझे,कभी दो कदम आगे,तो कभी ढाई कदम पीछे,क्यो जीवन को ‘शतरंज की बाजी’बना रही हो तुम,चलो तुम जीती,मैं
क्या लिखूँ बसंत मैं..
क्या लिखूँ बसंत मैं, पत्थरों के जंगलों में, वातानुकूलित कमरों में बैठा, क्या लिखूँ बसंत मैं…. ना पत्तों को झड़ते देखा, ना नवअंकुर लगते, क्या
अधूरी दास्तां…
एक पूरी ज़िंदगी मे,होते है कई अधूरे दास्ताँ,जैसे बूंद-बूंद से बनता है समंदर,जैसे राई-राई से बनता है पहाड़,वैसे ही कई अधूरी दास्तानों से मिलकर,बनती है
पर्यावरण की रक्षा..
बाथ टब के बाद उसने शावर लिया,और अपनी AC कार से,वो शोशल वर्कशाप पे पहुँचा…गज़ब की ओज़ थी उसकी वाणी में..पर्यावरण पे क्या बोलता था
ख़्वाब देखा करो..
मैंने पूछा,थकते नही तुम?ना दिन देखते हो,ना रात,ना ही तुम ऊबते हो,ना शिकायत करते हो,एक समय मे इतने काम,ऊफ़,क्या राज है तुम्हारी ज़िंदादिली का…? उसने
रिटायरमेंट..
सबको नही मिलती,‘रिटायरमेंट’हम रोज कुआं खोदते है,रोज पानी पीते है…इकट्ठा कर सके कल के लिए,इतना मयस्सर ना हुआ,अब तो अच्छा लगता है…मेहनतकशीं भी एक लत
खुद को लिख ना पाया..
जब भी मैंने दिल से लिखा,कोई समझ ना पाया,जब भी मैने तुमको लिखा,तुम्हे समझ ना आया,जब भी मैने खुद को लिखा,खुद को लिख ना पाया..
खालीपन..
खालीपन की कोई दवा तो होती होगी,पंचामृत से मधुशाला तक,सब आज़माया मैनें…. अब तक खाली… रिक्त जगह ये कभी तो भरती होगी,जिया है मैनें,झोपड़पट्टी से,पांच
कितनी महंगी कविताएं है…
कितनी महंगी है कवितायें,कैसे तुमको समझाऊ…कितनी इसमें मधुशाला है,कितनी जागी रातें..कितनी आहत भाव है इसमें,कितनी अनकही बातें,मोल नही मिलती है आहें,मोल ना मिलती बाहें…कितनी महंगी
जीवन कैसे जीते है..
सुबह जो मुझे जोश से लबरेज़ देखते हैं,वो ही मुझे शाम को खामोश देखते हैं..एक ही दिन में कितने रंग मैं दिखला देता हूं,जीवन कैसे
अहसास…
सोचता हूँ सब लिख दू,फिर छोड़ देता हूँ..बहुतों ने है जितना लिखा,मैं उतना छोड़ देता हूँ,उन्हें भी दर्द लिखने का,जरा महसूस तो हो ले,मैं कुछ