सम्बल का मतलब तब समझ आया,
जब खुद को उसकी तलब लगी थी,
बड़ी मुश्किल से मिला था,
पर जब मिला तो,
आंखों से मोती बन टपक पड़ा,
अब मैं भी सम्बल बनूँगा,
किसी अपने की,
किसी अनजाने की,
क्योकि अब मैं सम्बल का मतलब समझ गया हूँ।।

सम्बल का मतलब तब समझ आया,
जब खुद को उसकी तलब लगी थी,
बड़ी मुश्किल से मिला था,
पर जब मिला तो,
आंखों से मोती बन टपक पड़ा,
अब मैं भी सम्बल बनूँगा,
किसी अपने की,
किसी अनजाने की,
क्योकि अब मैं सम्बल का मतलब समझ गया हूँ।।
बेटी के ICU में होने की तकलीफ बहुत अंदर तक थी, मैं निराश भी था। पूरा दिन हॉस्पिटल के चक्कर लगाता रहा कागजी कार्यवाही, रजिस्ट्रेशन और कोविड। पिछले दिन मंगलवार का व्रत था उस दिन सुबह ही निकलना पड़ा तो दो दिन से भूखा था पर भूख महसूस नही हुई। आपकी क्षमता हमेशा बुरे समय मे ही पता चलती है। सारी कार्यवाही खत्म कर मुझे वेटिंग रूम का रास्ता दिखा दिया गया। मैं उस समय अपने आप को दुनिया का सबसे दुखी और अभागा आदमी समझ रहा था, अंदर जा मैने एक कोने की सीट पकड़ी जहां चार्जिंग पॉइंट भी था। थका तो था ही सो बैठकर खुद के दुखड़े और कल क्या होगा में खो गया पता नही कब नींद आयी और कब सुबह हो गयी। सुबह मैं वही कोने के सोफे पे बैठा अपनी मोबाइल में कुछ टटोल रहा था और मेरे आस पास सभी य्या तो फोन पे या एक दूसरे से अपनी समस्याएं सांझा कर रहे थे। काफी देर सुनते ऐसा लगा जैसे मेरा दुख सबसे बड़ा नही और मैं इस दुख में अकेला नही। हम सब साथ है इस दुख में, असली दुख तो वो झेल रहा जिसको हम एडमिट कर के यहां बैठे है। वेटिंग रूम में बातों का सिलसिला कभी नही रुकता, कुछ लोग भजन और चालीसा भी बजाते है तो कुछ दुख से ऊबकर टिकटोक टाइप वीडियो चलाने लगते है।मैं चुप हूं। मैं हमेशा सोचता था पढ़ने का टाइम नही मिलता। मिला भी तो कहाँ, कोई नही पढ़ा तो यहां भी जा सकता है और मैं पढ़ने लगा। ओह! लिखने भी..
कुछ करते रहने की इतनी बुरी आदत है मुझे,
की कुछ भी करता रहता हूँ,
कोई काम ना भी हो तो बिजी रहता हूँ,
क्यो?
क्योकि बिजी रहने की गलतफहमी है मुझे,
मेरे क्रियाकलापों के हिसाब से अगर दिन रात,
12 घंटे के भी होते तो कोई खास फर्क ना पड़ता
कल ही मैं खुद से पूछ रहा था कि करता क्या हूँ मैं?
हमेशा बिजी रहता हूं और काम भी सारे पड़े रहते है… कुछ तो गलतफहमी है।
अव्यवस्था,अनियमितता और आलस…. इनको सिर्फ आप ही दूर कर सकते हों, क्योंकि ये आप के फैलाये पाप है।
हाय रे लत!
आज घड़ी,घर छोड़ आया हूं,
ऐसा लग रहा,
शरीर का कोई हिस्सा छोड़ आया हूँ,
तुम पूछती हो ना,
तुम मेरे लिए क्या हो,
कुछ ऐसा ही महसूस होता है,
जब तुम नही होती,
तो क्या अब मैं तुम्हे लत कहूँ…
क्या कहूँ ?
आप सभी पाठकों एवं मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए, बधाई । 🎉। इस खुशी,हर्ष, उल्लास मे एक एक बात याद रखिएगा, खुशियां बांटने से बढ़ती है।
इस नकारात्मक और कठिन समय मे बहुत से भाई बंधु शायद ही अपने परिवारों को आवश्यक वस्तुए उपलब्ध करा पाए, अपने आस पास नजर रखे और जितना हो सके लोगों की मदद करे क्योंकि जो आप बाटते हो वो दस गुना हो वापस लौटता है।
अंत मे एक बात फिर से –
याद रखिएगा, खुशियां बांटने से बढ़ती है।।
हैप्पी दिवाली 🪔
ये किस उधेड़बुन में उलझा रही हो मुझे,
कभी दो कदम आगे,
तो कभी ढाई कदम पीछे,
क्यो जीवन को ‘शतरंज की बाजी’
बना रही हो तुम,
चलो तुम जीती,मैं हार जाता हूँ,
तुम अपनी जिद वही रखो,
मैं अपना सर झुकाता हूँ,
कभी तो हाथ मे मेरी, तुम अपना हाथ भी दे दो,
कदम संग- संग बढ़ाओ,
थोड़ी दूरी साथ तो दे दो…
चलो कोई ऐसा चाल जिसमे,
तुम हारो ना मैं हारु..
चलो शतरंज की हम इक नई बाज़ी बनाते है..
क्या लिखूँ बसंत मैं,
पत्थरों के जंगलों में,
वातानुकूलित कमरों में बैठा,
क्या लिखूँ बसंत मैं….
ना पत्तों को झड़ते देखा,
ना नवअंकुर लगते,
क्या लिखूँ बसंत मैं…
एक पूरी ज़िंदगी मे,
होते है कई अधूरे दास्ताँ,
जैसे बूंद-बूंद से बनता है समंदर,
जैसे राई-राई से बनता है पहाड़,
वैसे ही कई अधूरी दास्तानों से मिलकर,
बनती है इक पूरी ज़िंदगी,
अधूरापन पूर्णता के मार्ग पर,
एक पड़ाव मात्र है,
और पड़ाव कभी गंतव्य नही होते,
पर गंतव्य तक का सफर पड़ावों के बिना अधूरी दास्ताँ है।।
बाथ टब के बाद उसने शावर लिया,
और अपनी AC कार से,
वो शोशल वर्कशाप पे पहुँचा…
गज़ब की ओज़ थी उसकी वाणी में..
पर्यावरण पे क्या बोलता था वो,
पानी बचाने से लेकर ,
ओज़ोन पर्त तक…
सब उसकी व्याख्यान जिंदा थे..
उसने दो पेड़ भी लगाये,
भाषण भी दिया,
और घर जाकर फिर
Hot water टब में,
उसने विश्राम किया…
थक चुका था वो,
समाज सेवा इतना आसान काम भी नही था…..
आखिर पर्यावरण की रक्षा के लिए,
वो कुछ भी कर सकता था…
मैंने पूछा,
थकते नही तुम?
ना दिन देखते हो,
ना रात,
ना ही तुम ऊबते हो,
ना शिकायत करते हो,
एक समय मे इतने काम,
ऊफ़,
क्या राज है तुम्हारी ज़िंदादिली का…?
उसने कहाँ,
ख़्वाब देखा करो,
नींद,भूख,थकान ,ऊबन,
सब छूमंतर हो जाएंगे…
किसी सिद्ध पुरूष ने कहाँ है,
ख़्वाब वो नही होते,
जो सोने के बाद आते है,
ख़्वाब वो होते है,
जो सोने नही देते….
सबको नही मिलती,
‘रिटायरमेंट’
हम रोज कुआं खोदते है,
रोज पानी पीते है…
इकट्ठा कर सके कल के लिए,
इतना मयस्सर ना हुआ,
अब तो अच्छा लगता है…
मेहनतकशीं भी एक लत होती है,
अब काम ना हो तो,
खुद को चिकोटी काट कर चेक करता हूँ,
मैं ठीक तो हूँ ना,
खुद से वादा जो किया था,
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छत समाः।
जब भी मैंने दिल से लिखा,
कोई समझ ना पाया,
जब भी मैने तुमको लिखा,
तुम्हे समझ ना आया,
जब भी मैने खुद को लिखा,
खुद को लिख ना पाया..
खालीपन की कोई दवा तो होती होगी,
पंचामृत से मधुशाला तक,
सब आज़माया मैनें….
अब तक खाली…
रिक्त जगह ये कभी तो भरती होगी,
जिया है मैनें,
झोपड़पट्टी से,
पांच सितारा…
फिर भी खाली…
खालीपन की कोई दवा तो होती होगी…
कितनी महंगी है कवितायें,
कैसे तुमको समझाऊ…
कितनी इसमें मधुशाला है,
कितनी जागी रातें..
कितनी आहत भाव है इसमें,
कितनी अनकही बातें,
मोल नही मिलती है आहें,
मोल ना मिलती बाहें…
कितनी महंगी कविताएं है…